उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद अब दूसरे मंगलवार को महाराजा सुहेलदेव का विजयोत्सव के मौके पर सीएम योगी और सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर की सियासी केमिस्ट्री नजर आएगी. महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा का अनावरण सीएम योगी सिर्फ हिंदुत्व के एजेंडे को ही धार नहीं, बल्कि जातीय समीकरण को साधने की कवायद करते नजर आएंगे?
दरअसल, 10 जून 1034 को बहराइच में हुए युद्ध में महाराजा सुहेलदेव राजभर ने सालार मसूद गाजी को मार था. अब उस ऐतिहासिक जीत की स्मृति में योगी सरकार ने विजय दिवस मनाने का यह कार्यक्रम रखा है. सीएम योगी आदित्यनाथ स्वयं बहराइच में रहेंगे और उनके साथ सुभासपा के प्रमुख मंत्री ओम प्रकाश राजभर भी रहेंगे.
चित्तौरा के पास ही 40 फीट ऊंची कांस्य की बनी सुहेलदेव की प्रतिमा का अनावरण करेंगे, जिसे उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी की देखरेख में तैयार कराया गया है. सियासी हल्के में इस मेले के आयोजन के कई मायने निकाले जा रहे हैं.
गाजी मियां के मेले पर रोक तो सुहेलदेव का विजयोत्सव
योगी सरकार आने के बाद से बीजेपी गाजी मियां की विरासत को दबाने और महाराज सुहेलदेव का महिमामंडन करने के लिए कई कदम उठाए हैं. इस साल पहली बार गाजी मियां से जुड़े मेलों और त्योहारों को मनाने की अनुमति नहीं दी गई है तो दूसरी तरफ महाराज सुहेलदेव के नाम पर पहली बार मेला लगाया जा रहा. इसीलिए इस विजय मेले के आयोजन को काफी महत्व दिया जा रहा है.
बहराइच के चित्तौरा में महाराजा सुहेलदेव राजभर की याद में विजय दिवस के आयोजन पर होने वाले मेले का उद्घाटन सीएम योगी आदित्यनाथ करेंगे, जबकि विशिष्ट अतिथि सुभासपा अध्यक्ष व पंचायती राज मंत्री ओम प्रकाश राजभर होंगे. योगी सरकार इस आयोजन के माध्यम से बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश करेगी. गाजी मियां के संदर्भ में सीएम योगी पहले कह चुके हैं कि स्वतंत्र भारत ऐसे गद्दार को स्वीकार नहीं करेगा, जो कोई भी भारत के प्रतीकों का अपमान किया है, भारत की संस्कृति और परंपरा को रौंदा, हमारी बहनों और बेटियों के सम्मान को निशाना बनाया और हमारी आस्था पर हमला किया.
ओम प्रकाश राजभर भी पहले ही कह चुके हैं कि महाराजा सुहेलदेव की जीत भारत के सम्मान का प्रतीक थी. कांग्रेस सरकार पर महाराजा सुहेलदेव राजभर की वीरगाथा को इतिहास की पुस्तकों से दूर रखने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि यह सवाल सिर्फ राजनीतिक नहीं है, यह हमारी अस्मिता, विरासत और बच्चों के भविष्य से जुड़ा हुआ है.
गाजी मियां बनाम सुहेलदेव महाराज का नैरेटिव
उत्तर प्रदेश के मध्य-पूर्वी क्षेत्र और भारत-नेपाल सीमा के पास एक जिले बहराइच में गाजी मियां की दरगाह पर आयोजित होने वाले मेले को अनुमति देने से योगी सरकार ने इनकार कर दिया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों ने पिछले कुछ दशकों में गाजी मियां की कहानी को मौजूदा राजनीति में शामिल करने और उन्हें एक खलनायक के रूप में पेश करने की कोशिश करती रही हैं और महाराज सुहेलदेव को नायक के तौर पर पेश किया.
सालार गाजी मियां को पिछड़ी जाति के हिंदू योद्धा महाराजा सुहेलदेव ने मार गिराया था. जिन्हें आज राजभर और पासी समुदाय के लोग प्रतीक मानते हैं. गाजी मियां बनाम महाराज सुहेलदेव के बहाने बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे को मजबूत करने की कवायद करती रही है. इस कवायद में ओबीसी के राजभर जाति और दलित समुदायों को अपनी ओर खींचने की स्ट्रैटेजी मानी जा रही है.
सुहेलदेव मेले का सियासी लाभ लेने का प्लान
माना जा रहा है कि महाराज सुहेलदेव के नाम पर लगने वाले मेले के आयोजन का सीधा लाभ बीजेपी और एनडीए गठबंधन को होगा. मुसलमान गाजी मियां को एक संत के रूप में पूजते हैं तो राजभर समुदाय के लोग महाराज सुहेलदेव को अपना आदर्श मानते हैं. इस तरह से बीजेपी दलितों और ओबीसी को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करने के लिए गाजी मियां को खलनायक के तौर पर पेश करने और महाराज सुहेलदेव एक आदर्श हिंदुत्व के सिपाही के रूप में पेश करती रही हैं, जिन्होंने भारत में इस्लामीकरण करने से रोकने का काम किया है.
राजभर वोटों पर बीजेपी की नजर
पूर्वांचल के जिलों में पिछड़ा समाज में अपनी पैठ रखने वाले राजभर समुदाय काफी अहम और निर्णायक भूमिका में है. यूपी में राजभर समुदाय भले ही 3 फीसदी के बीच है, लेकिन पूर्वांचल के जिलों में राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 फीसदी है. पूर्वांचल की 4 दर्जन सीटों पर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है. वाराणसी, सलेमपुर, बलिया, मऊ, गाजीपुर सहित अन्य जिलों में राजभर समाज के वोट का सीधा प्रभाव माना जाता है.
2017 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी के साथ मिलकर किस्मत आजमाई, जिसका राजनीतिक फायदा दोनों ही पार्टियों को मिला था. यूपी की लगभग 22 सीटों पर बीजेपी की जीत में राजभर वोटबैंक बड़ा कारण था, जबकि चार सीटों पर ओम प्रकाश राजभर की पार्टी को जीत मिली थी. बीजेपी के साथ राजभर की दोस्ती टूट गई और 2022 में अखिलेश यादव को राजभर वोटों का फायदा मिला, लेकिन चुनाव के बाद ओपी राजभर ने पाला बदला और बीजेपी के साथ फिर अपनी दोस्ती बना ली. अब 2027 के चुनाव से पहले सीएम योगी और ओम प्रकाश राजभर की सियासी केमिस्ट्री एक साथ खड़ी नजर आ रही है.